Thursday 8 June 2017

राजस्थान के अलवर में गौ रक्षा के नाम पर हत्या --------------------------------------------------- जग मोहन ठाकन ================================== पहलू खां की मौत –आखिर क्या है सी एम की चुप्पी का राज ? राजस्थान की दबंग एवं सर्वाधिक मुखर मानी जाने वाली मुख्य मंत्री वसुंधरा राजे आखिर पहलू खान की हत्या पर चुप क्यों है ? यह प्रश्न आज प्रदेश एवं बाहर के उन सभी लोगों को उद्वेलित कर रहा है, जो राजे के स्वभाव को अच्छी तरह से जानते हैं . एक महिला मुख्यमंत्री को क्यों नहीं सुनाई पड़ रहा पहलू की विलापती माँ का रुदन ? समाज के जागरूक नागरिकों का आक्रोश , पीड़ित परिजनों का वेदन एवं विपक्ष का विधान सभा तथा संसद में हंगामा कैसे सी एम राजे के कानों के पर्दों के पार जाने में असरहीन हो रहा है ? २४ अप्रैल को विधान सभा के अन्दर मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के प्रतिनिधियों द्वारा उठाया गया पहलू खां का मुद्दा तथा विधान सभा के ठीक सामने वाम दलों एवं पीपल्स फॉर सिविल लिबर्टीज यूनियन द्वारा इसी दिन से आयोजित तीन दिवसीय धरना पता नहीं क्यों सी एम राजे को उद्वेलित करने में नाकाम रहा है ? प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट के नेतृत्व में प्रदेश के राज्यपाल कल्याण सिंह को भी पहलू खां के मामले में २१ अप्रैल को कांग्रेस पार्टी की तरफ से एक ज्ञापन दिया गया था , जिसमे पूरे प्रकरण की सीबीआई से जांच कराने की मांग की गयी है . पायलट ने सवाल उठाया है कि जब पहलु खान एवं उसके साथियों ने सरकार द्वारा अधिकृत पशु मेले से पशु खरीदे और वहां सक्षम अधिकारियों से खरीद –फरोख्त की रसीद ली गयी , तो कैसे इन पशुओं को तस्करी से जोड़ा जा रहा है ? पायलट पूछते हैं कि आखिर कौन है , जो हत्या के दोषियों को बचा रहा है ? पुलिस की अब तक की कारवाई पर संदेह व्यक्त करते हुए पायलट कहते हैं कि पुलिस की अभी तक की कारवाई तथा राज्य के गृह मंत्री के बयानों से तो ऐसा लगता है कि दोषियों को बचाने के प्रयास किये जा रहे हैं . उल्लेखनीय है कि राज्य के गृह मंत्री ने अलवर हत्या प्रकरण पर जो बयान दिया था उस पर भी काफी बवाल मचा था. पायलट प्रश्न खड़ा करते हैं कि २० दिन से अधिक का समय गुजर चुका है , पर न जाने क्यों राज्य की मुख्यमंत्री अभी तक राज्य के नागरिकों तथा पीड़ितों के परिवारों को न्याय का भरोसा दिला पाने में नाकाम रही हैं ? यहाँ यह बता देना प्रासंगिक है कि अप्रैल की पहली ही तिथि को कुछ तथाकथित गौरक्षकों ने गौ वंशीय पशुओं को ले जा रहे वाहनों पर धावा बोलकर पशु ले जा रहे व्यक्तियों के साथ मारपीट की थी , जिसमे एक व्यक्ति पहलू खान चोट की वजह से दो दिन बाद चल बसा था . गौरक्षक पशु ले जा रहे व्यक्तियों को गौ तस्कर बता रहे थे , जबकि पहलू के परिजन कहते हैं कि वे पशु पालक हैं तथा कृषि के साथ साथ दुग्ध व्यवसाय भी करते हैं . अप्रैल का शुरुआती दिन ही हरियाणा के मेवात क्षेत्र के इन पांच गौ क्रेताओं के लिए संकट का पहाड़ सिद्ध हुआ . उन्हें क्या पता था कि जयपुर के पशु मेले से खरीदे गए गौवंशीय पशु उनके एक साथी पहलु खां की मौत का पैगाम लेकर आये हैं . समाचारों के अनुसार पुलिस ने छः ज्ञात व २०० अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ धारा ३०२ के तहत मामला दर्ज कर लिया है . मृतक के परिवार वालों का कहना है कि व्यापारियों ने मेले से नियमानुसार पशुओं की खरीद की थी . परन्तु प्रशासन व पुलिस राज्य में लागु १९९५ के कानून ( गौओं को हत्या के उद्देश्य से ले जाना ) के तहत इसे अपराध मान रही है . प्रदेश या देश में गौरक्षकों द्वारा हमले की यह कोई पहली घटना नहीं है . ऐसी ही कुछ घटनाओं से विक्षुब्ध होकर देश के प्रधानमंत्री को यह कहना पड़ा था कि अधिकतर गौरक्षक असामाजिक तत्व हैं . प्रधानमंत्री का इतना कहने के बावजूद ऐसी कौन सी ताकत है जिसके बल पर गौरक्षक कानून को अपने हाथ में लेकर ऐसी कारवाई अभी भी जारी रखे हुए हैं . कौन है जो गौरक्षकों को अभी भी शह दे रहा है ? मीडिया में अलवर में वितरित किये गए कथित पम्फ्लेट्स के समाचार भी छपे हैं , जिनमे पहलू खां व साथियों पर किये गए हमले में शामिल लोगों को सामाजिक कार्यकर्ता बताया गया है . एक स्वम्भू गौ रक्षक साध्वी कमल के एक सोशल मीडिया पर विडियो का जिक्र भी मीडिया की सुर्खियाँ बना है , जिसमे साध्वी ने मुस्लिम डेरी किसानों पहलू खान व अन्य साथियों पर हमला करने वाले कथित गौरक्षकों की तुलना क्रांतिकारी भगत सिंह , चन्द्रशेखर आज़ाद तथा सुखदेव से की है . पहलु खान हत्या मामले में आरोपित एक अन्य व्यक्ति विपिन यादव की भी साध्वी ने भगवान श्रीकृष्ण से बराबरी की है . प्राप्त सूचना के अनुसार राजस्थान में जनवरी २००९ से फरवरी २०१६ तक सात वर्ष में गौ तस्करी के मामलों में लगभग ६४०० व्यक्ति गिरफ्तार किये गए तथा गौ तस्करी के ३००० केस दर्ज हुए , इन में से २५०० मामलों में कोर्ट में चालान प्रस्तुत किये गए . लगभग २७०० वाहन गौ तस्करी के आरोप में जब्त किये गए . वर्तमान में गौ तस्करी के औसतन ५०० मामले प्रतिवर्ष दर्ज हो रहे हैं . यहाँ प्रश्न यह नहीं है कि गौ वंश को वैध रूप से ले जाया जा रहा है या अवैध रूप से . प्रश्न यह है कि क्या किसी भी व्यक्ति को कानून को एक तरफ रखकर अपने स्तर पर ही सजा देने का अधिकार है ? क्या कथित गौरक्षकों को यह अधिकार है कि वे अपने ही स्तर पर फैसला ले लें और व्यापारियों पर हमला बोल दें ? गौ रक्षकों को किसने यह अधिकार दिया है कि वे स्वयं बिना पुलिस व प्रशासन को सूचित किये ही तथा बिना उनका सहयोग लिए ही अपने स्तर पर चेकिंग करें और पिटाई करें ? क्या राज्य सरकार की मशीनरी इतनी पंगु हो गयी है कि गौरक्षकों को अवैध व्यापार की रोक थाम के लिए स्वयं ड्यूटी देनी पड़े . ? कानून व्यवस्था के अप्रभावी होने के मामले में मोटे रूप में तीन परिस्थितियां नजर आती हैं. प्रथम तो वह स्थिति है जहाँ कानून , प्रशासन व राजनैतिक सत्ता इतनी लचर हो जाती है कि लोगों को उस पर विश्वास ही नहीं रहता और वे अपने स्तर पर ही कानून की व्याख्या करते हैं . दूसरे परिवेश में लोग इतने उदण्ड हो जाते हैं कि उन्हें कानून , प्रशासन व राजनैतिक सत्ता का कोई भय नहीं रहता और वे स्वयं को इन सबसे ऊपर मानने लग जाते हैं . तीसरी वह स्थिति हो सकती है जब सत्ता व प्रशासन , जिन पर कानून का राज कायम करने की जिम्मेदारी है , तथा कानून तोड़ने वाले आपस में दूध में पानी की तरह मिल जाते हैं और सब कुछ दूधिया रंग का हो जाता है . आखिर कथित गौरक्षकों का उद्देश्य क्या है ? क्या वे वास्तव में गौरक्षा के लिए इतने चिंतिंत हैं कि वे सारे होश हवास व कानून कायदे भूलकर जान की बाजी लगाकर अगले पक्ष की जान भी लेने से नहीं कतराते ? यदि हाँ , तो क्यों नहीं सारे दिन गलियों व कूड़े के ढेर पर पॉलिथीन में अपनी क्षुधा शांत करने हेतु मुह मारती ये लाचार गायें इन भक्तों को दिखाई देती ? क्यों नहीं इन आवारा गायों को ये गौ भक्त अपने घरों में आसरा दे देते ? हिंदुत्व को प्रमुख एजेंडा मानने वाली व गौओं के लिए सर्वाधिक चिंता जताने वाली सरकारे क्यों नहीं अपने ही राजकीय कोष से सहयाता प्राप्त गौशालाओं में भूख व ख़राब वातावरण के कारण मरने वाली सैंकड़ों गायो की जिंदगी बचा पाती हैं ? क्यों नहीं होती है इन मौतों की जांच व कारवाई ? प्रश्न पूछे जा रहे हैं कि कहीं कथित गौ चिन्तक गौरक्षा के नाम पर किसी “हिडन” राजनैतिक एजेंडा के तहत समाज का धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण तो नहीं करना चाहते हैं ? देश में आज के दिन राज करने वाली पार्टी भाजपा दोहरे मानदंड अपना कर क्या सिद्ध करना चाहती है ? एक तरफ तो अपने शाषित प्रदेशों में गौरक्षा को अपना प्रमुख एजेंडा बनाये हुए है, दूसरी तरफ उसके ही कुछ नेता पूर्वोत्तर राज्यों में गौवध की छूट का अलग ही राग अलाप रहे है . आशंका जताई जा रही है कि चुनाव पूर्व भाषणों में जम्मू कश्मीर से धारा ३७० को हटाने की पक्षधर भाजपा कहीं अपने ही दोहरे आचरण की वजह से पूर्वोत्तर राज्यों को भी कोई विशेष धारा से न जोड़ दे ? उत्तर प्रदेश में हिंदुत्व के एजेंडा को आगे रखकर भारी जीत हासिल करने वाली भाजपा को यह तो ध्यान रखना ही होगा कि देश हित व मानव हित सर्वोपरि हैं . कहीं हम इनकी उल्लंघना तो नहीं कर रहे हैं ? ======

No comments:

Post a Comment