राजस्थान
जग मोहन ठाकन
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क्या डिनर डिप्लोमेसी मिटा पाएगी कांग्रेसी दिग्गजों के मनभेद ?
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अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी के महामंत्री एवं राजस्थान प्रदेश के प्रभारी गुरुदास कामत
द्वारा राजस्थान काँग्रेस के शीर्ष नेताओं को एकजुट कर एक मंच पर लाकर आपसी
मतभेदों को मिटाने हेतु इसी अक्तूबर माह से शुरू की गई डिनर डिप्लोमेसी क्या अपने
उद्देश्य में सफल हो पाएगी ? यह यक्ष प्रश्न वर्तमान हालात में राजनैतिक गलियारों में मुख्य चर्चा का विषय बना हुआ है । उल्लेखनीय है
कि इसी अक्तूबर के प्रथम सप्ताह में काँग्रेस के प्रदेश प्रभारी कामत ने अपनी डिनर
डिप्लोमसी की परिकल्पना को अमलीजामा पहनाने हेतु प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं
वयोवृद्ध नेता अशोक गहलोत के आवास पर काँग्रेस
के प्रमुख नेताओं को प्रथम भोज पर
आमंत्रित किया था । तीन घंटे तक चली इस
डिनर मीटिंग के बाद कामत ने कहा था कि पार्टी में कोई मतभेद नहीं है और सभी नेताओं को साथ लेकर चलने की रणनीति के
तहत इस प्रकार की डिनर बैठकें हर माह आयोजित की जाएंगी । परंतु पहली ही बैठक में
पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं प्रभावी नेता सी पी जोशी की अनुपस्थिति डिनर
डिप्लोमेसी की पोल खोल बैठी । हालांकि कामत ने इसे हल्के में लिया और अगली डिनर की
मीटिंग नवम्बर के प्रथम सप्ताह में प्रदेश काँग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट के नाम
लिख दी ।
परंतु प्रथम डिनर डिप्लोमेसी की मीटिंग को मात्र दस दिन ही हुए थे कि
बीकानेर में प्रदेश काँग्रेस कार्यकारिणी
की तेरह अक्तूबर को आयोजित मीटिंग तथा अगले ही दिन
काँग्रेस सेवा दल की सभा में काँग्रेस के दिग्गज नेताओं ने एक बार फिर इन दोनों ही
दिनों में अनुपस्थित रहकर कामत की डिप्लोमेसी को ठेंगा दिखा दिया । पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तथा
पूर्व केन्द्रीय मंत्री सी पी जोशी इन मीटिंगों से दूरी बनाए
रखे और एक बार फिर संदेश दे दिया कि वे अपनी मर्जी के अनुसार कार्यक्रम तय करते
हैं न कि किसी डिप्लोमेसी के आधार पर । गहलोत ने तो यह ट्वीट –“ अपने मित्र के
पारिवारिक कार्यक्रम में व्यस्तता की बदौलत मीटिंग में नहीं आ पाएंगे” करके यह साफ संकेत भी दे दिया कि उनके
लिए पार्टी के कार्यक्रमों की बजाय व्यक्तिगत व्यस्तता अधिक महत्व रखती है ।
भले
ही दिग्गज नेताओं ने बीकानेर के इस कार्यक्रम पर बेरुखी अपनाई हो ,परंतु पार्टी कार्यकर्ताओं में दोनों ही दिन उत्साह था
। पार्टी अध्यक्ष सचिन पायलट ने भी अपने आपको एक नेता की बजाय एक कार्यकर्ता के
रूप में पेश कर आम कार्यकर्ता का दिल जीतने का प्रयास किया । उन्होने अपने आप को
एक साधारण कार्यकर्ता बताते हुए स्पष्ट कर दिया कि राज्य में पार्टी नेतृत्व का फैसला चुनाव के
बाद आलाकमान ही करेगा । पायलट ने कार्यकर्ताओं को कहा कि वे सबसे भाग्यशाली
अध्यक्ष हैं क्योकि उन्हे सभी छोटे बड़े कार्यकर्ताओं का सहयोग प्राप्त है । जहां पायलट ने निचले स्तर के कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चलने का
संकेत दिया वहीं उन्होने समूहिक नेतृत्व की तरफ इशारा करके सभी नेताओं को भी अपने
साथ चलने का निमंत्रण दे दिया । जब उनसे पार्टी के आंतरिक मतभेद बारे पूछा गया तो
पायलट ने बड़ी ही चतुराई से कहा कि उन्हे पार्टी अध्यक्ष के रूप में सभी नेताओं का
सहयोग प्राप्त है । कॉंग्रेस पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर चंदर भान तथा
विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता रामेश्वर डुड्डी भी कार्यक्रम में उपस्थित रहे ।
क्योंकि बीकानेर व आसपास का क्षेत्र गंगानगर तथा हनुमानगढ़ किसान बाहुल्य क्षेत्र
है , इसलिए उपरोक्त दोनों नेताओं को साथ लेकर पायलट ने किसानों को विशेषकर जाटों
को भी अपने साथ जोड़ने का प्रयास किया है ।
इसमे वे कितने सफल होते हैं यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा । उल्लेखनीय है कि
काँग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत
के सत्ता कार्यकाल में जाट उपेक्षित महसूस करने लगे थे , और इसी का खामियाजा
काँग्रेस को 2013 के विधान सभा तथा 2014 के लोकसभा चुनावों में हार के रूप में
भुगतना पड़ा था । अब पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट इस बारे में काफी सजग हैं
तथा अपनी हर मीटिंग में जाट नेताओं , विशेषकर विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता
रामेश्वर डुड्डी को साथ लेकर चलते हैं । गत वर्ष धौलपुर तथा भरतपुर के जाटों के आरक्षण को सबसे पहले समर्थन देने वाले सचिन
पायलट ही थे । अभी इसी 19 अक्तूबर को
राजस्थान हाई कोर्ट द्वारा ओ बी सी कमिशन को भंग करने के आदेश पर काँग्रेस अध्यक्ष
सचिन पायलट ने भाजपा सरकार को घेरना प्राम्भ कर दिया है । इस आदेश का असर राजस्थान
के जाटों सहित पन्द्रह जातियों पर पड़ेगा । राजस्थान की जिन जातियों पर इसका असर
पड़ेगा उन जातियों को काँग्रेस अपने पक्ष में करने के लिए इस मुद्दे को प्रमुखता से
उठाने में जुट गई है । इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सचिन पायलट ने
कहा है कि यह पहला अवसर है कि भारत में किसी ओ बी सी आयोग को अवैध घोषित किया गया
है । सचिन ने सत्तारूढ़ भाजपा सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि यह सरकार की लापरवाही है और इससे साफ
झलकता है कि जो वर्ग अपने हक की लड़ाई के लिए संघर्षरत हैं उनके प्रति सरकार गम्भीर नहीं है । इस मुद्दे पर प्रतिपक्ष नेता रामेश्वर डुड्डी ने भी
पायलट के मत का समर्थन करते हुए भाजपा सरकार पर कटाक्ष किया है कि यदि मुख्यमंत्री
वसुंधरा राजे राज काज की चिंता करती तो ओ बी सी आयोग भंग होने की नौबत ही नहीं आती ।
जब भी किसी परिवार
, संस्था या पार्टी के सदस्यों के बीच भीतरी कलह का धुआँ उठने लगता है तो
समझदार मुखिया समझ जाता है कि अब उसकी पकड़ ढीली होती जा रही है । यदि मुखिया इस
धुएँ के प्रति अज्ञानी व अनभिज्ञ रहता है या ऐसा बने रहने का उपक्रम करता है तो
स्थिति कभी भी विष्फोटक हो सकती है और सर्वाधिक नुकसान मुखिया की साख को ही
पहुंचता है । एक सजग मुखिया कभी ढिलाई बर्दास्त नहीं करता । क्योंकि –ढीलापन जब
शुरू होता है , हर कोई अफजल गुरु होता है । आज काँग्रेस में आंतरिक गुटबाजी की प्रवृति
खतरनाक स्तर तक पहुँच गई प्रतीत हो रही है । पड़ौसी राज्य हरियाणा की हाल की घटनाओं
को देखें तो वहाँ के प्रदेश काँग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर तथा राज्य के पूर्व
कोंग्रेसी मुख्यमंत्री भूपेंदर हुड्डा के बीच मतभेद जूतम पजार तक पहुँच चुका दिख रहा है । गत दिनों राहुल गांधी के स्वागत को लेकर दोनों
गुटों के कार्यकर्ताओं की भिड़ंत मारपीट स्तर पर पहुँच गई , जिसमे स्वयं प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर को काफी चोट आई तथा उन्हें हॉस्पिटल
में दाखिल होना पड़ा ।
राजस्थान में भी आंतरिक फूट का धुआँ स्पष्ट दिख
रहा है । प्रदेश में काँग्रेस पार्टी के तीन गुट साफ पनपते नज़र आ रहे हैं । एक गुट
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा पोषित है , दूसरा पूर्व
केन्द्रीय मंत्री सी पी जोशी से जोश पा रहा है तो तीसरे गुट के पायलट स्वयं प्रदेश
अध्यक्ष सचिन पायलट हैं । किसी एक नेता द्वारा की जा रही सभा में अन्य दो नेताओं
के समर्थक रुचि नहीं ले रहे हैं । इससे मूल कोंग्रेसी कार्यकर्ताओं में तो आक्रोश
है ही , आम जन में भी काँग्रेस के भविष्य को लेकर सवाल उठने लगे
हैं । हालांकि अभी आगामी विधान सभा चुनाओं में दो वर्ष का समय बाकी है परंतु अभी
से ही तीनों नेताओं ने अपनी अपनी ताजपोशी के सपने लेने शुरू कर दिये हैं । निजी
कार्यकर्ताओं की फौज तो जुटती है परंतु कोंग्रेसी नेताओं की सभाओं में “कोंग्रेसी” कार्यकताओं का अभाव स्पष्ट दिखता है । ऐसे
में काँग्रेस के राष्ट्रीय महामंत्री एवं राजस्थान के प्रभारी गुरुदास कामत की
डिनर डिप्लोमेसी कितनी सफल हो पाएगी यह तो वर्ष 2018 के नवम्बर में होने
वाले राज्य विधान सभा चुनावों के नतीजे ही बेहतर बता पाएंगे । हाँ इतना अवश्य है कि कलह वाले
परिवार नुकसान में ही ज्यादा रहते हैं ।