Wednesday 19 October 2016

व्यंग्य लेख --- जग मोहन ठाकन


बैंगन का भुरता बनाम सत्ता का जहर
     गुरूजी प्रवचन करके जैसे ही घर पर लौटे तो देखा कि बाहर कचरा दानी में ताज़ा बैंगन का भुरता मंद मंद मुस्करा रहा है ! रसोई द्वार पर पत्नी को देखते ही गुरूजी ने पूछा देवी जी , यह जायकेदार बैंगन की सब्जी और कचरा दान में ?क्या जल गई थी या नमक ज्यादा हो गया था ? गुरु पत्नी ने आश्चर्य पूर्वक कहा महाराज ,आप ही तो प्रवचन में कह रहे थे कि बैंगन का भुरता बड़े नुकसान की चीज है ! थोड़े समय पहले ही तो आप बुराई पर बुराई कर रहे थे बैंगन के भुर्ते की ! मैंने तो आपके ही प्रवचन से प्रभावित होकर ताज़ा बनाये बैंगन के भुर्ते  को कचरा दानी में फेंका है ! गुरु जी ने माथे पर हाथ मारा अरी भाग्यवान , वो प्रवचन तो पब्लिक के लिए था ! बैंगन का भुरता  तो बड़ा ही गुणकारी होता है ! प्रवचन तो होते ही पर-वचन हैं यानि कि दूसरों के लिए वचन !
  उपरोक्त कथा सार को अपने जीवन में अक्षरश ढाल चुकी एक इटेन्डियन माँ ने अपने  प्रौढ़ आयु के नादान बच्चे को राजनीति के गुर सिखाते हुए एक ब्रह्म वाक्य बताया –पुत्र सत्ता जहर है !हम जनता के लिए बने हैं ,जनता द्वारा बने हैं और जनता को यह बात सिखानी है ! गुर शिक्षा चल ही रही थी कि दरवाजे की घंटी टनटनाने लगी ! माँ ने आगंतुक से भेंट करने के लिए पुत्र को , यह कह कर कि बाकी फिर कभी , दूसरे  कमरे में भेज दिया ! अगले ही दिन पुत्र अपने चेले चपटओं की एक सभा में प्रवचन दे रहे थे सत्ता जहर है , हम जनता के लिए बने हैं ,जनता द्वारा बने हैं और जनता को यह बात सिखानी है ! ऐसा  मम्मा ने कहा है !
      यही ब्रह्म वाक्य मीडिया के माध्यम से एक तेली पुत्र तक भी पहुंचा ! तेली पुत्र मंद मंद मुस्काया ! उसने ब्रह्म वाक्य के सार सूत्र को समझ लिया था ! क्योंकि दो पीढ़ी पूर्व उसके एक पूर्वज ने ऐसे ही एक जहर का रसास्वादन कर लिया था ! उस समय गुलाम भारत में एक सेठ पूर्वज तेली को मजदूरी पर अपने साथ मार्किट ले गया था, एक पीपा सिर पर लादकर घर लाने के लिए ! पूर्वज तेली ने रास्ते में आराम करने हेतु पीपा उतार  कर नीचे रखा ,तो  देखा कि पीपे के ढीले ढक्कन से कुछ तरल बाहर निकला हुआ है ! पूर्वज तेली ने सेठ से पूछा कि इस पीपे में क्या है ? सेठ ने  तेली को झिडकते हुए कहा जहर है ,वो पीपे के ढक्कन को ना खोले ! सेठ पूर्वज तेली को आराम करके आने का निर्देश देकर चल पड़ा ! पूर्वज तेली को शक हुआ ! उसने ढक्कन के पास बाहर निकले तरल को अंगुली भरकर चख कर देखा ! अरे , यह तो मीठा है , बिलकुल शहद की तरह ! पूर्वज तेली को उसकी इमानदारी ने ढक्कन खोलने से रोका ! पर चंचल दिल नहीं माना और तेली ने ढक्कन खोलकर देख लिया ! पीपा तो रसगुल्लों से भरा था ! खैर पूर्वज तेली ने भर पेट रसगुल्ले चखे और ढक्कन को पुनः चोकस बंद करके चल पड़ा !

खबर पढ़कर      पूर्वज तेली की तीसरी पीढ़ी के इस तेली पुत्र ने   सत्ता जहर है’’ ब्रह्म वाक्य को आत्मसात करते हुए बुदबुदाया हमारे  पूर्वज इस जहर को चख चुके हैं और अब हम  भी इस जहर को चख कर ही विराम लेंगे !   
माँ-- पुत्र को  चिंता हो रही थी कि यह जहर की पोटली अब उनसे खिसकने वाली है !!
आज तेली पुत्र मुंह में जहर की सत्ता पोटली की नलकी दबाये मंद मंद मुकुराते हुये चुस्कियां ले रहा है ! उधर उसी शहर के एक वीरान हो चुके विशाल आवास में एक पुत्र. जो सत्ता जहर को चूसने का एडिक्ट हो चुका है , अपनी माँ से सत्ता जहर की टॉफिया लेने की जिद कर रहा है ! माँ पुत्र को ऐसी आशा नहीं थी !

   जग मोहन ठाकन
   


        

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