Wednesday 19 October 2016

राजस्थान से   जग मोहन ठाकन

मानवता रोती रही सीकर  पुलिस सोती रही
शर्म मगर उनको क्यों नहीं आती ? क्यों नहीं दिखता निज दागदार चेहरा ? आखिर ऐसी कौन सी ट्रेनिंग दी जाती है कि पुलिस की वर्दी धारण करते ही मानवता एवं संवेदनशीलता विलुप्त हो जाती है ? क्यों नहीं सुनता उनको ममता का रुदन ? क्यों नहीं झकझोरती उन्हें एक माँ की मनुहार ?
  यह सब प्रश्न उठते हैं  सितम्बर  १० और ११ की मध्यरात्रि को राजस्थान के जिला मुख्यालय  सीकर में हुए मानवता को शर्मसार करने वाले एक चार वर्षीया बालिका के साथ बलात्कार की घटना पर | सीकर के कल्याण सर्किल पर अपने पांच बच्चों के साथ सो रही माँ को यह कभी सपने में भी ख्याल  नहीं आया होगा कि उसका कुछ मिनट का बच्चों से अलगाव उसे इतनी भारी विपदा में डाल  देगा | रात करीब एक बजे वह किसी काम से बच्चों को सोता छोड़ कहीं  चली गयी थी , परन्तु जब लौटी तो अपनी चार वर्षीय बालिका को वहां न पाकर वह  दंग रह गयी | उसने  चारों तरफ आसपास के क्षेत्र तथा रेलवे स्टेशन पर बालिका को  ढूँढा ,पर असफलता के सिवाय कुछ भी हाथ नहीं लगा | थक हार कर वह अंततः रात को अढाई बजे पुलिस से मदद के लिए कल्याण  सर्किल चौकी गयी | यहाँ कार्यरत  पुलिस कर्मियों ने  अपने पुलिसिया  अंदाज में स्पष्ट  कह दिया  कि - बच्ची  यहीं कहीं गयी होगी , खुद ही ढूंढो | माँ रात  तीन बजे फिर  चौकी में  मनुहार करने गयी , पुनः वही जवाब मिला | सुबह  छः बजे तक वह तीन बार चौकी गयी , पर मानवता विहीन  वर्दीधारियों  को कहाँ सुनती  है एक माँ की वेदना  | चौकी  से निराश  हो लाचार  माँ   सदर थाने  गयी , पर यहाँ भी उसे केवल  आश्वासन  मिला कि शीघ्र तलाश के लिए पुलिस भेज रहे हैं | निराश  माँ  पुनः अपने स्तर पर ही पुत्री कि खोज में लग गयी |उसे सुबह  सात बजे रेलवे स्टेशन  पर  ही  कल्याण पुलिस चौकी  से मात्र पांच सौ  मीटर की  दूरी  पर लहूलुहान बच्ची   एक कूड़े के ढेर में  बेसुध मिली | बच्ची  की  माँ का आरोप है कि बच्ची के लापता  होने  के बाद वह चार घंटे तक चौकी और थाने   के चक्कर काटती  रही,   पर पुलिस ने बच्ची को ढूँढने  की कोशिश तक नहीं की  | वह खुद ही उसे एस के अस्पताल लेकर गयी | अस्पताल में भी सात बजे पहुँचने के बावजूद  इलाज शुरू नहीं  किया गया | पुलिस भी सुबह  दस   बजे अस्पताल  पहुंची|  जब दोपहर बारह बजे एस पी अखिलेश कुमार अस्पताल पहुंचे तब बालिका का उपचार शुरू हुआ  | परन्तु हालत ज्यादा नाजुक होने के कारण बच्ची को जयपुर के जे के  लोन  हॉस्पिटल  रेफेर कर दिया गया |
       शुरूआती जांच में पुलिस  द्वारा बच्ची की माँ द्वारा शक के आधार पर दो व्यक्तियों राम सिंह और बाबु लाल के खिलाफ केस दायर कर पूछ ताछ प्राम्भ की गयी थी | परन्तु भारतीय पुलिस के बारे में रीछ के अपराध की बाबत बन्दर  से पीट पीट कर अपराध कबूल करवाने के कारनामे वाली   प्रचलित कहावत की तरह ही इन दोनों को भी राजस्थान पुलिस द्वारा अपराधी घोषित कर दिया जाता , अगर एक प्राइवेट सी सी टी वी की फुटेज में यह अपराध की घटना रिकॉर्ड नहीं हुई होती | पुलिस ने फुटेज के आधार पर बीकानेर जिले के नोखा निवासी पवन कुमार बिश्नोई को इस जघन्य दुष्कर्म प्रकरण के लिए गिरफ्तार कर लिया है | पुलिस के मुताबिक  पवन कुमार बच्ची के बरामदगी स्थल के नजदीक ही एक होटल में काम करता था तथा घटना के बाद से उसकी अचानक होटल छोड़ जाने की सूचना पर पुलिस ने संदेह के आधार पर उसे उसके घर नोखा से गिरफ्तार किया है |पुलिस के अनुसार पवन कुमार ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है | शुक्र है फुटेज का जिससे पुलिस हिरासत में लिए गए राम सिंह और बाबु लाल की  रिहाई हो सकी | वर्ना राजस्थान के बलात्कार के दर्ज मामलों में एक और मामला झूठा हो जाता | उल्लेखनीय है कि  नेशनल क्राइम  रिकॉर्ड ब्यूरो [ एनसीआरबी ] के मुताबिक देश में संगीन व महिला उत्पीडन सम्बन्धी अपराध में सबसे ज्यादा झूठे मामले राजस्थान में ही दर्ज होते हैं | वर्ष २०१४ में प्रदेश के ८६१ थानों में २१०४९८ हत्या , हत्या के प्रयास , डकैती ,लूट , दुष्कर्म , चोरी व नकबजनी सहित अन्य मामलों के प्रकरण दर्ज हुए थे , जिनमे से ४६७९४ मुकद्दमे पुलिस की जांच में झूठे पाए गए |  इन दर्ज मुकदमों में से प्रदेश में बाईस प्रतिशत से अधिक प्रकरण झूठे दर्ज  हुए हैं |
   राजस्थान में औसतन प्रतिदिन पांच हत्याएं और दस दुष्कर्म के मामले दर्ज होते हैं | राजस्थान का इसमे देश में दूसरा नंबर है | गत वर्ष राजस्थान में दुष्कर्म की ३७५९ घटनाएँ हुई थी | प्रथम स्थान पर मध्य प्रदेश रहा | राजस्थान पुलिस द्वारा बलात्कार के बढ़ते मामलों को देखते हुए एक आंतरिक अध्ययन करवाया गया था , जिसमे वर्ष २०१४ में नवम्बर माह तक ४५ प्रतिशत बलात्कार के दर्ज मामले झूठे पाए गए थे |
       हालाँकि एस एस पी द्वारा कल्याण चौकी के इन्चार्ज को कोताही बरतने के आरोप में ससपेंड भी कर दिया गया है ,  राजस्थान मानवाधिकार आयोग द्वारा सीकर बालिका दुष्कर्म की जांच के आदेश भी दे दिए गए हैं , परन्तु इस काण्ड को लेकर नागरिकों द्वारा सीकर , पिलानी , झुंझुनू आदि शहरों में किये गए प्रदर्शनों एवं व्यक्त आक्रोश को क्या उपरोक्त कदम शांत करने में काफी हैं ? जब पुलिस को रात्रि में अढाई बजे महिला ने सूचना दे दी थी , तो क्यों नहीं पुलिस अधिकारीयों ने अपने आला अफसरों को तुरंत सूचित किया ? एसएसपी स्वयं  बारह बजे अस्पताल पहुंचते हैं, जबकि महिला कल्याण चौकी तथा सदर थाने  में सुबह छः बजे तक कई बार गुहार लगा चुकी थी | क्या एसएसपी की प्रशासनिक व्यवस्था इतनी लचर है कि नीचे वाले अधिकारी उन्हें इतने बड़े प्रकरण की  सूचना तक देना उपयुक्त नहीं समझते ? या स्वयं एसएसपी द्वारा ही कोई ऐसा वातावरण तैयार कर दिया गया है कि उनके मातहत उन्हें सूचना देने का साहस ही नहीं कर पा  रहे हैं ? कारण कुछ भी हो पुलिस की जानबूझ कर की गयी लापरवाही ने एक मासूम की जिंदगी व इज्जत को सरे आम दांव  पर लगा दिया | अगर सीसीटीवी की फुटेज को सही माना जाये तो पुलिस की त्वरित कारवाई बच्ची को बचा सकती थी | और अपराधी मौके पर ही पकड़ा जा सकता था , क्योंकि  पुलिस द्वारा जारी की गई फुटेज के  अनुसार आरोपित व्यक्ति रात्रि एक बजकर बारह मिनट पर लड़की को ले जाते हुए दिख रहा है तथा सुबह पांच बजकर इक्यावन मिनट पर वापिस आता हुआ नजर आ रहा है और पीडिता को कूड़े के ढेर पर छोड़ देता है | इसी स्थल पर पीडिता सुबह बरामद हुई थी |अगर महिला की मनुहार को मानकर पुलिस महिला द्वारा रात्रि के अढाई बजे  दी गयी सूचना के समय ही हरकत में आ जाती तो बलात्कारी को मौके पर ही पकड़ा जा सकता था |
 मुद्दा सवाल उठाता है कि क्या बालिका को जिंदगी मौत से जूझते  छोड़ अपनी नींद पूरी करने वाले पुलिस कर्मियों व  अधिकारीयों को अपने किये की  सजा मिल पायेगी ? क्या  वे भविष्य में  संवेदन शील  होने  बारे कुछ सोच पाएंगे ? या आगे भी खाकी वर्दी यों ही दागदार होती रहेगी | कहीं ऐसा न हो कि राजस्थान पुलिस दाग अच्छे हैं का नीति वाक्य ही ना अपना ले |   

   

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