हाथ में झाड़ू
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सिर पर टोपी लाल , हाथ में रेशम का रूमाल , होये
तेरा क्या कहना । आम नत्थू की खास चाय की दुकान पर यह गाना बज रहा था । मोहल्ले में
घर की चाय से असंतुष्ट प्रबुद्धजनों का जमावड़ा रोज की तरह नत्थू की दुकान पर लगा हुआ था । चुनावों
पर टिप्पणी पर टिप्पणी पान की बेगम पर हुकुम के बादशाह की तरह फटकारी जा रही थी । तभी
मोहल्ला कवि रमलु प्रसाद भाष्कर ने कहा -‘‘ रूको रूको , मेरे दिमाग में इस गीत में
कुछ तबदीली की कुलबुलाहट हो रही है । जरा ध्यान से सुनो ।’’ सभी चुप हो गये ं। रमलु
प्रसाद ने अपनी फटे बांस सी रानी मुखर्जी टाइप आवाज में पैरोडी प्रस्तुत की । ‘‘ सिर
पर टोपी सफेद , हाथ में झाड़ू का कमाल , होये तेरा क्या कहना । ’’ नगरपालिका में मुनादी
करने वाले मसुदी लाल ने तुरन्त मुगलिया दाद दी । ‘‘ बहुत खूब , बहुत खूब । क्या पैरोडी
मारी है । कमाल कर दिया , धोती का रूमाल कर दिया । बधाई हो रमलु प्रसाद जी । ’’
तभी हिन्दी के अध्यापक पण्डित गणेशी लाल जी
ने जोड़ा - ‘‘भई , हाथ और झाड़ू की इस डेढ
इश्किया जोड़ी पर तो पूरा शोध ग्रंथ लिखा जा सकता है । दोनों में चोली दामन का संम्बंध
नजर आता है। बिना ‘‘ हाथ ’’ के ‘‘ झाडू ’’
कुछ नहीं कर सकती । परन्तु ‘‘हाथ ’’ की चतुराई
देखिये कि जो ‘‘ हाथ ’’ पहले ‘‘झाड़ू’’ को
हाथ नहीं लगाता था , वही ‘‘हाथ ’’ अब उसी तिरष्कृत ‘‘झाड़ू ’’ को हाथ में चैकस पकड़े
बैठा है । और उसी ‘‘हाथ ’’ की सफाई देखिये कि उसी ‘‘झाड़ू’’ को सहलाये भी जा रहा है
,और गंदगी की सफाई के बहाने ‘‘झाड़ू’’ को घिसाये भी जा रहा है । परन्तु ‘‘झाड़ू ’’
की मजबूरी है, जब तक उसे पकड़ने वाले ‘‘हाथ ’’ का संग ना हो वह कोई सफाई नहीं कर सकती
।
‘‘ हाथ ’’ का पुराना तजुर्बा है, उसने
सदैव ‘‘ यूज , फयूज एण्ड रिफयूज ’’ थ्यौरी का प्रयोग किया है तथा वह इसमें कामयाब भी
रहा है । यह इसी ‘‘हाथ ’’ की कलाकारी ही है कि वह कभी ‘‘लालटेन ’’ को पकड कर प्रकाश
की व्यवस्था करता है, कभी ‘‘साइकिल ’’ के हैण्डल को अपनी सुविधा अनुसार घुमाता है
, तो कभी भारी भरकम मदमस्त ‘‘ हाथी ’’ के मस्तक को सहलाकर तो कभी भाला मारकर काबू करता
है । परन्तु समय गवाह है कि जिस किसी को भी ‘‘हाथ ’’ ने हाथ लगाया वो ‘‘ पिंजरे का
तोता ’’ बनकर रह गया ।
हमारे देश के एक बहुत बड़े नेता ने बहुत पहले टोपी और फूल को संग संग रखकर
भारतीय राजनीति में अपनी अहम् पैठ जमाई थी । परन्तु उनकी आने वाली पीढियों ने ‘‘टोपी ’’ औैर फूल दोनों को भुला दिया । जिसका फायदा अन्य लागों ने उठाया औैर वही ‘‘टोपी
’’ और ‘‘ फूल ’’ उसी बड़े नेता की वर्तमान पीढियों के गले की फॅंास बनी हुई हैं। आज टोपी किसी के पास है तो फूल किसी
के पास । ’’
मास्टर गणेशी लाल के लम्बे भाषण से परिचर्चा में
ठहराव सा आ गया । लोग उठ कर चलने लगें । परन्तु नत्थू चाय वाला सोच रहा है कि कहीं
यही ‘‘हाथ ’’ इस बंधी ‘‘ झाड़ू ’’ को भी तिनका तिनका न कर दे । औैर ‘‘झाड़ू ’’ के मंसूबों
पर झाड़ू न फेर दे । ।
जग मोहन
ठाकन
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